Deva Holding AS (DEVA)
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Deva Holding AS कंपनी प्रोफाइल
Deva Holding AS कंपनी प्रोफाइल
- प्रकार : इक्विटी
- बाज़ार : टर्की
- आईसआईन : TRADEVAW91E2
Deva Holding A.S. manufactures and sells pharmaceutical products in Turkey. The company provides antineoplastic and immunomodulating agents; dermatological products; sysyemic hormanal preparations; anti-infective and antiparasitic products for systemic use; food supplements; and electrolyte solutions. It also offers products in the areas of urogenital system and sex hormones, blood and blood forming organs, cardiovascular system, musculoskeletal system, nervous system, alimentary tract and metabolism, respiratory system, and sensory organs. In addition, the company offers cephalosporins, penicillin, inhalation products, solid and liquid oncology, animal health products, active pharmaceutical ingredients, ampoules, liquid and lyophilized vials, eye drops, medical ampoules for sterile injectable products, and cologne. It also exports its products to approximately 60 countries. The company was incorporated in 1958 and is based in Istanbul, Turkey. Deva Holding A.S. is a subsidiary of Eastpharma S.à R.L.
आय विवरण
तकनीकी सारांश
ट्रेंडिंग शेयर
ट्रेंडिंग शेयर
DEVA टिप्पणियाँ
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बजट से पहले केंद्र सरकार कैपिटल गेन्स टैक्स नियमों में कर सकती है बदलाव, जानिए क्यों
रेट्स और होल्डिंग पीरियड को लेकर कैपिटल गेन्स टैक्स के भ्रम को दूर करने के लिए सरकार विचार कर रही है. इस बात की संभावना है कि बजट से पहले सरकार इस टैक्स से जुड़े नियमों में बदलाव कर टैक्सपेयर को बड़ी राहत दे.
सरकार बजट से पहले कैपिटल गेन्स टैक्स के नियमों में बदलाव कर सकती है. इसकी मांग बहुत पहले से की जा रही है. पूर्व में सरकार ने भी माना है कि इस टैक्स का नियम पेचीदा है जिसे बदला जाना चाहिए. इस साल फरवरी में रेवेन्यू सेक्रेटरी तरुण बजाज ने कहा था कि सरकार कैपिटल गेन्स टैक्स के नियमों पर विचार करने के लिए तैयार है. इसी संदर्भ में माना जा रहा है कि सरकार बजट से पहले कैपिटल गेन्स टैक्स के नियमों में कुछ बदलाव कर सकती है. किस प्रॉपर्टी को कितना दिन होल्ड करने के बाद बेचा जा रहा है, इस हिसाब से कैपिटल गेन्स टैक्स लगता है. इसका रेट अलग-अलग है जिसके चलते इस इनकम टैक्स में कन्फ्यूजन की स्थिति बनी रहती है.
टैक्सपेयर की हमेशा से शिकायत रही है कि कब कैपिटल गेन्स टैक्स लगेगा, कब नहीं और किस मद में कितना टैक्स लगेगा, इसे लेकर भ्रम की स्थिति बनी रहती है. शेयर, डेट और अचल संपत्तियों पर लगने वाले कैपिटल गेन्स टैक्स को लेकर भी कन्फ्यूजन रहता है. कैपिटल गेन्स टैक्स का नियम चल और अचल दोनों संपत्तियों पर लागू है. इन दोनों तरह की संपत्ति को बेचने पर जो कमाई होती है, उस पर टैक्स देना होता है. हालांकि इस टैक्स के नियम से व्यक्तिगत चल संपत्तियों को बाहर रखा गया है. जैसे कार, कपड़े और फर्नीचर को बेचने पर कमाई होती है, तो उस पर कैपिटल गेन्स टैक्स नहीं लगेगा.
टैक्स पर कन्फ्यूजन क्यों
रेट्स और होल्डिंग पीरियड को लेकर कैपिटल गेन्स टैक्स के भ्रम को दूर करने के लिए सरकार विचार कर रही है. इस बात की संभावना है कि बजट से पहले सरकार इस टैक्स से जुड़े नियमों में बदलाव कर टैक्सपेयर को बड़ी राहत दे. उदाहरण के लिए रियल एस्टेट के लिए कैपिटल गेन्स टैक्स का होल्डिंग पीरियड 24 महीने है जबकि शेयर के लिए 12 महीने और डेट के लिए 36 महीने है. इस अवधि के बाद ऐसी संपत्ति बेची जाए तो उस पर कैपिटल गेन्स टैक्स लगता है. लेकिन भ्रम तब होती है जब यह पता नहीं चलता कि कितनी अवधि के लिए कितना टैक्स देना होगा.
होल्डिंग के आधार पर टैक्स
कोई प्रॉपर्टी कितने दिनों तक होल्ड की जा रही है, फिर बाद में उसे बेचने पर हुई कमाई के आधार पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स और शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स लगता है. इन दोनों टैक्स की गणना अलग-अलग तरीके से की जाती है. अगर कोई संपत्ति 36 महीने होल्ड करने के बाद बेची जाती है तो कमाई पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स लगता है. होल्डिंग अवधि इससे कम हो तो संपत्ति की कमाई पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स लगता है. कंफ्यूजन की स्थिति तब पैदा होती है जब शेयर या इक्विटी म्यूचुअल फंड में 12 महीने की होल्डिंग पर ही लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स लग जाता है.
टैक्स स्लैब में अंतर क्यों
हाउस प्रॉपर्टी को 24 महीने की होल्डिंग के बाद बेचा जाए तो उसकी कमाई लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स के दायरे में आ जाती है. अगला विरोधाभास ये है कि शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स में वही टैक्स लगता है जो टैक्सपेयर का स्लैब होता है. लेकिन इक्विटी शेयर और इक्विटी म्यूचुअल फंड की बिक्री और बिजनेस ट्रस्ट का यूनिट बेचने पर 15 परसेंट का टैक्स लगता है. यहां टैक्सपेयर के टैक्स स्लैब का कोई नियम नहीं लगता. यही वजह है कि लोग इस भ्रम को दूर करने और नियमों में बदलाव करने की मांग कर रहे हैं.
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English News Headline: long term and short term captal gains tax rule may change ahead budget 2023
यस बैंक शेयर होल्डर 3 साल तक नहीं बेच सकेंगे अपनी हिस्सेदारी, 75 फीसदी शेयर रहेंगे लॉक इन
बिजनेस डेस्क. सरकार ने निजी क्षेत्र के चौथे बड़े बैंक यस बैंक लिमिटेड के पुनर्गठन की अधिसूचना जारी की है। इसके अनुसार यस बैंक के शेयर होल्डर्स 3 साल तक अपने शेयर नहीं बेच सकेंगे। पुनर्गठन में ये शर्त रखी गई है कि अगर आपने यस बैंक के 100 से अधिक शेयर खरीदे तो इनमें से 75 फीसदी हिस्सेदारी को 3 साल के लिए लॉक इन कर दिया जाएगा। यानी तीन साल तक आप ये शेयर नहीं बेच सकेंगे। हालांकि अगर किसी निवेशक के पास 100 से कम शेयर हैं तो वो अपने पूरे शेयर बेच सकता है।
क्या है लॉक इन?
लॉक-इन अवधि वह समय होता है जिसके दौरान निवेशक किसी संपत्ति को बेच नहीं सकते। उदाहरण के लिए अगर आपके पास यस बैंक के 100 शेयर हैं तो रेट बढ़ने या घटने पर आप सिर्फ 25 शेयर ही बेच सकेंगे। 75 शेयर को अगले तीन साल तक नहीं बेच सकेंगे। लॉक इन में निवेश की गई राशि को एक सीमित समयावधि के लिए ब्लॉक कर दिया जाता है।
कब लगाया जाता है लॉक इन?
आमतौर पर कंपनियां निवेशकों को खुद से लंबे समय तक जोड़े रखने और पैसों का इंतजाम करने के लिए इसका सहारा लेती हैं। ऐसा कोई कंपनी या तो शेयर मार्केट में लिस्टेड होने के तुरंत बाद करती हैं हालांकि ये लॉक इन 1 से 2 महीने का ही होता है। इसके अलावा किसी कंपनी या बैंक को वित्तीय संकट से निकालने के लिए सरकार भी लॉक इन का सहारा ले सकती है।
18 मार्च से मिल सकती है निकासी की छूट
सरकार ने निजी क्षेत्र के चौथे बड़े बैंक यस बैंक लिमिटेड के पुनर्गठन को लेकर अधिसूचना जारी कर दी है। इस अधिसूचना के जारी होने के बाद यस बैंक के ग्राहकों को बुधवार शाम 6 बजे से निकासी की छूट मिल सकती है। बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 के तहत यह अधिसूचना जारी की गई है। आरबीआई ने 6 मार्च को नकदी की कमी से जूझ रहे यस बैंक से पैसा निकालने की सीमा निर्धारित की थी। इसके तहत खाताधारक अभी तक एक महीने में अधिकतम 50 हजार रुपए ही निकाल सकते हैं।
एसबीआई ने 7250 करोड़ रुपए में खरीदी 49 फीसदी हिस्सेदारी
यस बैंक को संकट से निकालने के लिए एसबीआई ने 7250 करोड़ रुपए में इस बैंक में 49 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी है। एसबीआई ने यह हिस्सेदारी 10 रुपए प्रति शेयर की दर से खरीदी है। इसके अलावा निजी क्षेत्र के प्रमुख बैंक आईसीआईसीआई बैंक ने भी यस बैंक में 10 रुपए प्रति शेयर की दर से 1000 करोड़ रुपए के निवेश का ऐलान किया है। इस निवेश के साथ आईसीआईसीआई बैंक की यस बैंक में 5 फीसदी हिस्सेदारी हो जाएगी।
गौरव गर्ग, हेड ऑफ रिसर्च, कैपिटलव्हाया ग्लोबल रिसर्च लिमिटेड
हाल में पेश बजट की कई घोषणाएं भले बहुत सकारात्मक न रही हो, लेकिन एक प्रस्ताव ने काफी हलचल पैदा की है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में कंपनियों में सार्वजनिक शेयरधारिता (पब्लिक शेयरहोल्डिंग) की न्यूनतम सीमा को 25% से बढ़ाकर 35% करने का प्रस्ताव किया है। पूंजी बाजार नियामक सेबी ने 2010 में एक दिशानिर्देश के तहत कंपनियों के लिए 25% न्यूनतम पब्लिक शेयरहोल्डिंग को अनिवार्य किया था। 2014 में यह नियम सरकारी कंपनियों पर भी लागू किया गया। इन कंपनियों को शेयर होल्डिंग में इस परिवर्तन को अपनाने के लिए तीन साल का समय दिया गया था। शेयरहोल्डिंग में इस बदलाव से कुछ कंपनियों पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। आइए इसे थोड़ा विस्तार से समझते हैं..
एक लिस्टेड कंपनी में दो प्रकार के स्टेकहोल्डर होते हैं - प्रमोटर और पब्लिक यानी आम निवेशक। किसी कंपनी के लिए प्रमोटर वे लोग होते हैं जो कंपनी की स्थापना के समय उसे पूंजी मुहैया कराते हैं। अब तक सेबी ने प्रमोटरों को कंपनी में 65% से अधिक हिस्सेदारी रखने की अनुमति दी है। लेकिन बजट की घोषणा के बाद प्रमोटरों को अब अपनी हिस्सेदारी को घटाकर 65% पर लाना होगा। इस तरह देखें तो प्रमोटरों और संस्थापकों के लिए यह अच्छी खबर नहीं है। लेकिन आम निवेशकों और रिटेल कारोबारियों के लिए यह एक अच्छी खबर है। यह बदलाव होने से सेकेंडरी बाजारों में शेयर होल्डिंग अवधि नकदी की मात्रा अधिक होगी। इससे शेयरों की कीमतों में और सुधार होगा। जितने ज्यादा लोग कंपनी में निवेश करना चाहेंगे उनके शेयर की कीमत उसके उचित बाजार मूल्य (फेयर मार्केट प्राइस) के नजदीक आ जाएगी।
नए नियम के पालन में कंपनियों के प्रमोटरों अपनी अपनी हिस्सेदारी घटाकर 65% पर लाने के लिए 39,000 करोड़ रुपए के शेयर बेचने पड़ेंगे।
पब्लिक होल्डिंग बढ़ने से शेयर शेयर होल्डिंग अवधि भाव फेयर मार्केट प्राइस के करीब आएंगे
होल्डिंग की नई सीमा से 1,400 कंपनियां प्रभावित होंगी
1,400 लिस्टेड कंपनियां ऐसी हैं जिनमें प्रमोटरों की शेयरहोल्डिंग बजट प्रस्ताव के मानदंड के अनुरूप नहीं हैं। इन कंपनियों को जल्द ही बदलाव करने होंगे। इनमें से 14 मल्टीनेशनल कंपनियां ऐसी भी हैं जो निफ्टी एमएनसी इंडेक्स का हिस्सा हैं। उन्हें करीबन 2-10% की सीमा में अपने प्रमोटर की हिस्सेदारी को बेचना या कम करना होगा।
- ये लेखकों के निजी विचार हैं। इनके आधार पर निवेश से नुकसान के लिए दैनिक भास्कर जिम्मेदार नहीं होगा।
महेंद्र जाजू, हेड, फिक्स्ड इनकम, मिराई एसेट मैनेजमेंट
डेट म्यूचुअल फंड बॉन्ड में निवेश करते हैं जिनमें शेयरों की तरह कारोबार होता है। इनसे जो ब्याज या कैपिटल गेन होता है वह डेट फंड खरीदने वाले निवेशकों में बांटते हैं। डेट मार्केट में विभिन्न बॉन्ड की कीमतों में शेयरों की तरह उतार-चढ़ाव आता है। निवेशकों को डेट मार्केट पर नजर रखने के लिए कई बातों पर निगाह रखने की जरूरत होती है। मसलन, वैश्विक घटनाक्रम, इंटरेस्ट रेट साइकिल, महंगाई दर और क्रेडिट पिक-अप में तेजी। बॉन्ड की कीमतें इंटरेस्ट रेट साइकिल और केंद्रीय बैंक के नीतिगत फैसलों से प्रभावित होती है।
किसी भी निवेशक को अपना डेट म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो अपने लक्ष्य की अवधि, जोखिम क्षमता को ध्यान में रखकर बनाना चाहिए। डेट फंडों को हम तीन श्रेणी में बांट सकते हैं। पहला. लिक्विड फंड/लो ड्यूरेशन फंड, वह निवेशक शॉर्ट टर्म के लिए निवेश करना चाहते हैं उनके लिए उपयोगी हो सकते हैं। दूसरा, शॉर्ट टर्म फंड/क्रेडिट रिस्क फंड , वह निवेशक मीडियम टर्म (18 महीनेां से 3 साल) के लिए निवेश करना चाहते हैं उनके उपयोगी हो सकते हैं। तीसरा, बॉन्ड फंड, वह निवेशक जो लंबी अवधि (3 साल या इससे अधिक) के लिए निवेश करना चाहते हैं उनके लिए उपयोगी हो सकते हैं।
लिक्विड फंड, आमतौर पर 91 दिन तक की मैच्युरिटी वाले पेपर्स में निवेश करते हैं। ऐसे निवेशक जो शॉर्ट-टर्म के लिए निवेश करना चाहते हैं खासकर वे जो 3-6 माह की आमदनी के बराबर रकम जोड़ना चाहते हैं उन्हें इस तरह के फंडों में निवेश करने पर विचार करना चाहिए। ऐसे निवेशक जो 6-12 महीने के बीच निवेश करना चाहते हैं उन्हें लो ड्यूरेशन फंड में निवेश करना चाहिए। शॉर्ट ड्यूरेशन फंड में मैच्युरिटी 1-3 साल के बीच होती है। क्रेडिट रिस्क फंड आमतौर पर अधिक यील्ड पाने के लिए लो रेटेड पेपर्स में निवेश करते हैं। जो मीडियम टर्म के लिए निवेश करना चाहते हैं उन्हें ऐसे फंड चुनने चाहिए।
डेट पोर्टफोलियो जोखिम क्षमता और अवधि को ध्यान में रखकर बनाएं
लंबी अवधि के लिए बॉन्ड फंड में निवेश करना बेहतर
बॉन्ड फंड लंबी अवधि के पेपर्स में निवेश करते हैं। मैच्युरिटी औसत अधिक होने से इनका रिटर्न उतार-चढ़ाव वाला होता है। हालांकि, लंबी अवधि में इन्होंने अच्छा रिटर्न दिया है। ब्याज दरों के उतार-चढ़ाव को मैनेज करने का एक और तरीका डायनेमिक बॉन्ड फंड हैं जो ब्याज दर के आउटलुक के आधार पर उनकी अवधि को घटा-बढ़ा सकते हैं।
जब शेयर मार्केट गिरता है तो कहां जाता है आपका पैसा? यहां समझिए इसका गणित
Share market: जब शेयर मार्केट डाउन होता है, तो निवेशकों का पैसा डूबकर किसके पास जाता है? क्या निवेशकों के नुकसान से किसी को मुनाफा होता है. आइए इसका जवाब बताते हैं.
- शेयर मार्केट डिमांड और सप्लाई के फॉर्मूले पर काम करता है
- अगर कंपनी अच्छा परफॉर्म करेगी तो उसके शेयर के दाम बढ़ेंगे
- राजनीतिक घटनाओं का भी शेयर मार्केट पर पड़ता है असर
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नई दिल्ली: आपने शेयर मार्केट (Share Market) से जुड़ी तमाम खबरें सुनी होंगी. जिसमें शेयर मार्केट में गिरावट और बढ़त जैसी खबरें आम हैं. लेकिन कभी आपने सोचा है कि जब शेयर मार्केट डाउन होता है, तो निवेशकों का पैसा डूबकर किसके पास जाता है? क्या निवेशकों के नुकसान से किसी को मुनाफा होता है. इस सवाल का जवाब है नहीं. आपको बता दें कि शेयर मार्केट में डूबा हुआ पैसा गायब हो जाता है. आइए इसको समझाते हैं.
कंपनी के भविष्य को परख कर करते हैं निवेश
आपको पता होगा कि कंपनी शेयर मार्केट में उतरती हैं. इन कंपनियों के शेयरों पर निवेशक पैसा लगाते हैं. कंपनी के भविष्य को परख कर ही निवेशक और विश्लेषक शेयरों में निवेश करते हैं. जब कोई कंपनी अच्छा प्रदर्शन करती है, तो उसके शेयरों को लोग ज्यादा खरीदते हैं और उसकी डिमांड बढ़ जाती है. ऐसे ही जब किसी कंपनी के बारे में ये अनुमान लगाया जाए कि भविष्य में उसका मुनाफा कम होगा, तो कंपनी के शेयर गिर जाते हैं.
डिमांड और सप्लाई के फॉर्मूले पर काम करता है शेयर
शेयर मार्केट डिमांड और सप्लाई के फॉर्मूले पर काम करता है. लिहाजा दोनों ही परिस्थितियों में शेयरों का मूल्य घटता या बढ़ता जाता है. इस बात को ऐसे लसमझिए कि किसी कंपनी का शेयर आज 100 रुपये का है, लेकिन कल ये घट कर 80 रुपये का हो गया. ऐसे में निवेशक को सीधे तौर पर घाटा हुआ. वहीं जिसने 80 रुपये में शेयर खरीदा उसको भी कोई फायदा नहीं हुआ. लेकिन अगर फिर से ये शेयर 100 रुपये का हो जाता है, तब दूसरे निवेशक को फायदा होगा.
कैसे काम करता है शेयर बाजार
मान लीजिए किसी के पास एक अच्छा बिजनेस आइडिया है. लेकिन उसे जमीन पर उतारने के लिए पैसा नहीं है. वो किसी निवेशक के पास गया लेकिन बात नहीं बनी और ज्यादा पैसे की जरूरत है. ऐसे में एक कंपनी बनाई जाएगी. वो कंपनी सेबी से संपर्क कर शेयर बाजार में उतरने की बात करती है. कागजी कार्रवाई पूरा करती है और फिर शेयर बाजार का खेल शुरू होता है. शेयर बाजार में आने के लिए नई कंपनी होना जरूरी नहीं है. पुरानी कंपनियां भी शेयर बाजार में आ सकती हैं.
शेयर का मतलब हिस्सा है. इसका मतलब जो कंपनियां शेयर बाजार या स्टॉक मार्केट में लिस्टेड होती हैं उनकी हिस्सेदारी बंटी रहती है. स्टॉक मार्केट में आने के लिए सेबी, बीएसई और एनएसई (नेशनल स्टॉक एक्सचेंज) में रजिस्टर करवाना होता है. जिस कंपनी में कोई भी निवेशक शेयर खरीदता है वो उस कंपनी में हिस्सेदार हो जाता है. ये हिस्सेदारी खरीदे गए शेयरों की संख्या पर निर्भर करती है. शेयर खरीदने और बेचने का काम ब्रोकर्स यानी दलाल करते हैं. कंपनी और शेयरधारकों के बीच सबसे जरूरी कड़ी का काम ब्रोकर्स ही करते हैं.
निफ्टी और सेंसेक्स कैसे तय होते हैं?
इन दोनों सूचकाकों को तय करने वाला सबसे बड़ा फैक्टर है कंपनी का प्रदर्शन. अगर कंपनी अच्छा परफॉर्म करेगी तो लोग उसके शेयर खरीदना चाहेंगे और शेयर की मांग बढ़ने से उसके दाम बढ़ेंगे. अगर कंपनी का प्रदर्शन खराब रहेगा तो लोग शेयर बेचना शुरू कर देंगे और शेयर की कीमतें गिरने लगती हैं.
इसके अलावा कई दूसरी चीजें हैं जिनसे निफ्टी और सेंसेक्स पर असर पड़ता है. मसलन भारत जैसे कृषि प्रधान देश में बारिश अच्छी या खराब होने का असर भी शेयर मार्केट पर पड़ता है. खराब बारिश से बाजार में पैसा कम आएगा और मांग घटेगी. ऐसे में शेयर बाजार भी गिरता है. हर राजनीतिक घटना का असर भी शेयर बाजार पर पड़ता है. चीन और अमेरिका के कारोबारी युद्ध से लेकर ईरान-अमेरिका तनाव का असर भी शेयर बाजार पर पड़ता है. इन सब चीजों से व्यापार प्रभावित होते हैं.
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