कंपनियां कई बार अपने शेयरधारकों को डिविडेंड देती है. वहीं, कई बार उन्हें एक्स्ट्रा शेयर भी दिया जाता है.

Share Market: एशियाई मार्केट में मामूली तेजी, भारतीय बाजार में सुधार के संकेत

Share Market Prediction: डाओ जोन्स में 0.13 फीसदी, S&P 500 में 0.39 फीसदी और नैस्डैक में 1.09 फीसदी की गिरावट रही.

Share Market: एशियाई मार्केट में मामूली तेजी, भारतीय बाजार में सुधार के संकेत

Stock Market News Update Today: विदेशी मार्केट से मिले-जुले संकेत मिल रहे हैं. एक तरफ अमेरिकी और यूरोपीय बाजारों में गिरावट रही तो दूसरी तरफ एशियाई बाजार मामूली बढ़त के साथ कारोबार कर रहे हैं. मंगलवार को भारतीय शेयर बाजार पर भी इसका असर देखने को मिल सकता है.

सेंसेक्‍स पिछले सत्र में 519 अंक गिरकर 61,145 पर बंद हुआ था, जबकि निफ्टी 148 अंकों की गिरावट के साथ 18,160 पर पहुंच गया था. एक्‍सपर्ट का मानना है कि मंगलवार के कारोबार में निवेशकों पर ग्‍लोबल मार्केट में आई गिरावट का असर तो दिखेगा, लेकिन सेंटिमेंट पॉजिटिव रह सकता है.

विदेशी बाजारों का क्या है हाल?

ग्लोबल मार्केट से मिलेजुले संकेत मिल रहे हैं. आर्थिक मंदी के साथ ही कोरोना से भी बाजार सहमा हुआ है. पिछले सत्र में अमेरिकी बाजार में सुस्ती देखने को मिली और ये गिरावट के साथ बंद हुआ. डाओ जोन्स में 0.13 फीसदी, S&P 500 में 0.39 फीसदी और नैस्डैक में 1.09 फीसदी की गिरावट रही. ऐसा ही कुछ हाला यूरोपीय बाजारों का भी रहा. यूरोप के सभी प्रमुख शेयर बाजार नुकसान पर बंद हुए.

अगर एशियाई बाजार की बात करें तो हफ्ते के दूसरे दिन जापान के निक्केई में 214 अंक यानी 0.8 फीसदी की तेजी है. वहीं, कोरियाई बाजार KOSPI में 0.30 फीसदी की गिरावट देखी जा रही है. SGX Nifty में 22 अंकों की तेजी है.

बाजार पर इसका भी असर

रेटिंग एजेंसियां CRISIL और ICRA ने सोमवार को चालू वित्त वर्ष 2022-23 और दूसरी तिमाही जुलाई-सितंबर के लिए भारत के वृद्धि दर के अनुमान में संशोधन किया है. CRISIL ने वित्त वर्ष 2022-23 की दूसरी तिमाही के लिए वृद्धि के अनुमान को 0.30 फीसदी घटाकर सात फीसदी कर दिया, जबकि ICRA ने इसके 6.5 फीसदी रहने की उम्मीद जताई. वैश्विक वृद्धि के बाधित होने और फसल उत्पादन प्रभावित होने के चलते दोनों रेटिंग एजेंसियों ने वृद्धि का अनुमान कम किया है.

FIIs/DIIs डेटा

भारतीय पूंजी बाजार से विदेशी निवेशकों ने एक बार फिर पैसा निकालना शुरू कर दिया है. पिछले कारोबारी सत्र में विदेशी संस्‍थागत निवेशकों ने 1,593.83 करोड़ रुपये के शेयर बेचकर बाजार से पैसे निकाल लिए. हालांकि, इसी दौरान घरेलू संस्‍थागत निवेशकों ने 1,262.91 करोड़ रुपये के शेयरों की खरीदारी की है.

इन स्टॉक्स पर रखें नजर

NDTV: मीडिया कंपनी नयी दिल्ली टेलीविजन (NDTV) में बाजार से अतिरिक्त 26 फीसदी हिस्सेदारी हासिल करने के लिए अडाणी ग्रुप की खुली पेशकश मंगलवार से शुरू होगी. कंपनी ने अपनी खुली पेशकश के लिए मूल्य दायरा 294 रुपए प्रति शेयर तय किया है.

Nykaa: प्राइवेट इक्विटी प्लेयर लाइट हाउस इंडिया मंगलवार को एक ब्लॉक डील के जरिए नायका की पैरेंट कंपनी FSN ई-कॉमर्स वेंटर्स में 335 कोड़ के शेयर बेचेगी.

Keynes Technologies: कायनेस टेक्नोलॉजीज मंगलवार को बाजार में पदार्पण करेगी. बीएसई पर कायन्स को ट्रेडिंग और डिलिंग के लिए 'बी' समूह के तहत सूचीबद्ध किया जाएगा. ₹858 करोड़ के आईपीओ को 34.16 गुना ओवरसब्सक्रिप्शन मिला था.

Jindal Steel and Power: बोत्सवाना ने भारत के जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड को 300 मेगावाट कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्र के निर्माण के लिए पसंदीदा बोलीदाता के रूप में चुना है.

Nazara Technologies: नजारा टेक्नोलॉजीज ने सितंबर 2022 में खत्म तिमाही में 11% यानी ₹169 करोड़ की वृद्धि दर्ज की. कंपनी के मुताबिक उसका राजस्व 104% बढ़कर ₹2,638 हो गया है.

डिस्क्लेमर: यहां दिए गए किसी भी तरह के इन्वेस्टमेंट टिप्स या सलाह एक्सपर्ट्स और एनालिस्टस के खुद के हैं. और इसका क्विंट हिंदी से कोई लेना-देना नहीं है. कृपया कर किसी भी तरह के इन्वेस्टमेंट डिसिजन लेने से पहले अपने वित्तीय सलाहकार से परामर्श अवश्य ले.

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LPG Gas Price: कैसे तय होती है एलपीजी गैस सिलेंडर की कीमत और क्यों बढ़ रही हैं लगातार कीमतें? जानें वजह

How LPG Gas Price Calculated in India

How LPG Gas Price Calculated in India: आज के दौर में एलपीजी गैस सिलेंडर हमारी रसोई की खास जरूरत बन गया है। खाना पकाने से लेकर कई दूसरे कामों में इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। वहीं दूसरी तरफ बीते लंबे समय से लगातार एलपीजी गैस सिलेंडर की कीमतों में वृद्धि हो रही है। ऐसे में एलपीजी गैस सिलेंडर के दामों के बढ़ने का बुरा असर आम लोगों पर पड़ रहा है। हाल ही में गुरुवार को रसोई गैस सिलेंडर की कीमतों में 3.50 रुपये की वृद्धि की गई। इसके अलावा 7 मई को भी गैस सिलेंडर के दामों में 50 रुपये की बढ़ोत्तरी की गई। वहीं क्या आपको इस बारे में पता है कि आखिर रसोई गैस सिलेंडर के दामों को कैसे तय किया जाता है? अगर नहीं, तो आज हम आपको उसी के बारे में बताने वाले हैं। इसके अलावा हम ये भी जानेंगे कि आखिर बीते कुछ वक्तों में रसोई गैस सिलेंडर के दामों में वृद्धि क्यों हो रही है? आइए जानते हैं -

How LPG Gas Price Calculated in India

भारत में एलपीजी गैस सिलेंडर की कीमतों को निश्चित करने में डॉलर एवं रुपये का एक्सचेंज रेट और अंतर्राष्ट्रीय बेंचमार्क रेट एक बड़ी भूमिका निभाते हैं। इंटरनेशनल मार्केट में जब भी एलपीजी गैस सिलेंडर की कीमतों में इजाफा होता है या डॉलर की अपेक्षा रुपया कमजोर होता है। इस स्थिति में देश में रसोई गैस सिलेंडर के दामों में वृद्धि होने लगती है।

Bull Market vs Bear Market: बुल मार्केट और बियर मार्केट में क्या अंतर होता है? आइए समझते है

Bull Market vs Bear Market: स्टॉक की कीमतों में क्या वृद्धि होती है अगर आप निवेशक है तो आपने बुल मार्केट और बियर मार्केट के बारे में सुना होगा। लेकिन क्या आप जानते है कि बुल और बियर मार्केट क्या होता है? और दोनों में क्या अंतर है? (Difference Between Bull Market and Bear Market) तो आइए जानें।

 Bull Market vs Bear Market: शेयर मार्केट में उतार और चढ़ाव का दौर हमेशा चलता रहता है। जब शेयर बाजार ऊपर की ओर कई दिनों तक संकेत देते है तो बुल मार्केट (Bull Market) के रूप में पहचाना जाता है। वहीं, शेयरों में जब गिरावट को दौर लगातार जारी रहता है तो इसे बियर मार्केट (Bear Market) के रूप में जाना जाता है। आइए इस लेख में और विस्तार से समझें कि बुल और बियर मार्केट क्या होता है? और दोनों में क्या अंतर है? (Difference Between Bull Market and Bear Market) तो आइए जानें।

बुल मार्केट क्या है? | What is Bull Market in Hindi

यह एक ऐसे बाजार को संदर्भित करता है जिसे सिक्योरिटी प्राइस में वृद्धि स्टॉक की कीमतों में क्या वृद्धि होती है के रूप में चिह्नित किया जाता है, या कम से कम किसी विशेष अवधि में ऊपर जाने की उम्मीद है। सिक्योरिटीज की खरीद के लिए अनुकूल होने वाली अधिकांश स्थितियों के साथ, एक बुल मार्केट आमतौर पर निवेशक को खरीद प्रक्रिया शुरू करने के लिए प्रेरित करता है। आशावाद में वृद्धि, व्यापार और रिटर्न की उच्च मात्रा, और निवेशकों का फिर से विश्वास इस तरह के बाजार की रूपरेखा बनाते हैं। जो निवेशक स्टॉक की कीमतों में वृद्धि का अनुमान लगाते हैं उन्हें 'Bulls' और उनकी भावनाओं को 'Bullish' कहा जाता है।

बुल मार्केट लाइफ साईकल

फर्स्ट स्टेज

पिछले बुल मार्केट द्वारा छोड़े गए निराशावादी बाजार की भावनाओं में सुधार

सेकंड स्टेज

कॉर्पोरेट इनकम में फिर से सुधार, ट्रेडिंग वॉल्यूम में एक क्रमिक अभी तक स्थिर वृद्धि, स्टॉक की कीमतों में वृद्धि और आर्थिक मैट्रिक्स ऊपर-औसत स्तर पर इंगित करते हैं

सुरक्षा कीमतों और बाजार सूचकांकों में चरम पर, और ट्रेडिंग वॉल्यूम में लगातार वृद्धि

स्टॉक की कीमतों के साथ उच्च प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश (IPO) गतिविधियां उच्चतम स्तर पर

एक बियर मार्केट क्या है? | What is Bear Market in Hindi

इस तरह के बाजार में सुरक्षा कीमतों में लगातार गिरावट की विशेषता होती है। निराशावाद एक भालू बाजार में व्याप्त है और यह ठीक इसलिए है क्योंकि अधिकांश निवेशक एक छोटी स्थिति पर कब्जा कर लेते हैं - ऐसा कुछ जो इस डर से उपजा है कि ऐसे बाजार में प्रतिभूतियों को रखने से केवल नुकसान होगा।

स्टॉक ट्रेडिंग में गिरावट, रिटर्न में गिरावट और निवेशकों का कम विश्वास एक भालू बाजार के कुछ प्रमुख आकर्षण हैं, जिसे अक्सर अर्थव्यवस्था में मंदी का नतीजा माना जाता है। शेयर की कीमतों में गिरावट का अनुमान लगाने वाले निवेशकों को 'Bears' कहा जाता है, और उनकी भावनाओं को 'Bearish' कहा जाता है।

बियर मार्केट लाइफ साईकल

फर्स्ट स्टेज

सकारात्मक बाजार भावनाओं के अवशेष लेकिन निवेशक अधिकतम लाभ स्तरों पर प्रतिभूतियों को बेचने के बाद धीरे-धीरे बाजार से बाहर निकल रहे हैं

सेकंड स्टेज

स्टॉक की कीमतों में तेजी से गिरावट, ट्रेडिंग वॉल्यूम में गिरावट, प्रचलित निराशावाद और आर्थिक संकेतक नीचे स्टॉक की कीमतों में क्या वृद्धि होती है के स्तर पर प्रदर्शन कर रहे हैं।

स्टॉक की कीमतों में और गिरावट लेकिन धीमी गति से। यह मंदी के सबसे निचले बिंदु के रूप में माना जाता है क्योंकि निवेशकों को यह विश्वास होने लगा है कि उन्होंने अंततः मंदी के तूफान का सामना किया है।

बुल और बियर मार्केट में क्या अंतर है? | Difference Between Bull Market and Bear Market

निम्नलिखित आधारों पर दोनों के बीच अंतर स्पष्ट रूप से खींचा जा सकता है-

एक Bull Market एक विशेष अवधि में आक्रामक रूप से बढ़ता है, जबकि Bear Market में महीने-दर-महीने आधार पर लगातार गिरावट देखी जाती है।

सकारात्मक दृष्टिकोण एक बुल बाजार में व्याप्त है जबकि इसके बियर समकक्ष निराशावाद से व्याप्त है।

एक बुल बाजार में, निवेशक एक लंबी स्थिति पर कब्जा कर लेते हैं। यानी वे प्रतिभूतियों को लाभ पर बेचने की आशा में खरीदते हैं जब कीमतें अनुबंधित दर से अधिक हो जाती हैं। दूसरी ओर, निवेशक एक बियर बाजार में एक छोटी स्थिति पर कब्जा कर लेते हैं, यानी वे अपनी प्रतिभूतियों को बेच देते हैं और बाजार छोड़ना शुरू कर देते हैं।

एक Bull Market को उच्च और बढ़ती स्टॉक कीमतों द्वारा चिह्नित किया जाता है, दूसरी ओर एक Bear Market वह है जो प्रतिभूतियों की कीमतों में लगातार गिरावट का प्रदर्शन करता है।

ट्रेडिंग वॉल्यूम

बुल मार्केट में ट्रेड किए गए शेयरों की मात्रा अधिक होती है, जबकि बियर मार्केट में यह आंकड़ा काफी कम होता है।

बाजार सूचकांक और आर्थिक संकेतक एक बुल मार्केट में औसत से ऊपर के स्तर पर प्रदर्शन करते हैं। इसके विपरीत, एक बियर मार्केट को निम्न-बराबर आर्थिक संकेतकों द्वारा परिभाषित किया जाता है।

Explainer: कैसे तय होती है LPG सिलेंडर की कीमत, दिनोंदिन क्यों महंगी हो रही गैस

रसोई गैस का कच्चा माल क्रूड ऑयल होता है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड के दाम से एलपीजी के दाम तय स्टॉक की कीमतों में क्या वृद्धि होती है होते हैं. अभी क्रूड की कीमत रिकॉर्ड ऊंचाई पर है. बुधवार को अंतरराष्ट्रीय तेल मानक ब्रेंट क्रूड 1.61 प्रतिशत बढ़कर 110.87 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर पहुंच गया. इसमें बढ़ोतरी लगातार जारी है जिसके चलते गैस के भाव भी बढ़ते जा रहे हैं.

Explainer: कैसे तय होती है LPG सिलेंडर की कीमत, दिनोंदिन क्यों महंगी हो रही गैस

खाना बनाने में इस्तेमाल होने वाले एलपीजी सिलेंडर (LPG Cylinder) के दाम में गुरुवार को 3.50 रुपये की वृद्धि हुई. यह इस महीने एलपीजी सिलेंडर की कीमतों में दूसरी बार वृद्धि है. गैस कंपनियों की ओर से जारी एक अधिसूचना के अनुसार, राष्ट्रीय राजधानी में गैर रियायती यानी बिना सब्सिडी वाले 14.2 किलोग्राम एलपीजी सिलेंडर की कीमत अब 1,003 रुपये हो गई है. इससे पहले सात मई को प्रति सिलेंडर 50 रुपये की वृद्धि की गई थी. इससे पहले 22 मार्च को भी प्रति सिलेंडर कीमतों में इतनी ही वृद्धि की गई थी. अप्रैल 2021 से अब तक सिलेंडर के दाम में 193.5 रुपये तक की वृद्धि हो चुकी है. कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव के बीच यह जानना जरूरी है कि गैस सिलेंडर के दाम (LPG Price) कैसे तय होते हैं. यह भी जानेंगे कि दिनोंदिन रसोई गैस इतनी महंगी क्यों हो रही है.

भारत में एलपीजी सिलेंडर के दाम तय करने में दो फैक्टर मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं. पहला, डॉलर के मुकाबले रुपये का एक्सचेंज रेट और दूसरा, अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क रेट. अंतरराष्ट्रीय बाजार में एलपीजी के दाम बढ़ने और रुपये के कमजोर होने पर घरेलू बाजार में एलपीजी के दाम बढ़ जाते हैं. सिलेंडर के दाम बढ़ाने में अभी दोनों फैक्टर एक साथ जिम्मदार हैं. डॉलर के मुकाबले रुपये में लगातार गिरावट जारी है और बेंचमार्क रेट भी खस्ता हालत में है. रुपये की हालत पिछले कई हफ्ते से गड़बड़ है, खासकर तेल के दाम में बढ़ोतरी के बाद इसमें और गिरापट जारी है. बुधवार के रिकॉर्ड देखें तो रुपया 17 पैसे की गिरावट के साथ 77.61 प्रति डॉलर के अपने नए निचले स्तर पर बंद हुआ था. रुपये में गिरावट के पीछे विदेशी फंड के लगातार बाहर जाने और घरेलू शेयर बाजार गिरने को जिम्मेदार माना जा रहा है.

रसोई गैस का कच्चा माल क्रूड ऑयल होता है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड के दाम से एलपीजी के दाम तय होते हैं. अभी क्रूड की कीमत रिकॉर्ड ऊंचाई पर है. बुधवार को अंतरराष्ट्रीय तेल मानक ब्रेंट क्रूड 1.61 प्रतिशत बढ़कर 110.87 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर पहुंच गया. इसमें बढ़ोतरी लगातार जारी है जिसके चलते गैस के भाव भी बढ़ते जा रहे हैं.

इस फॉर्मूले से तय होती हैं कीमतें

भारत में एलपीजी सिलेंडर के दाम मुख्य रूप से ‘इंपोर्ट पैरिटी प्राइस या IPP’ के फार्मूले से तय होते हैं. इस आईपीपी का निर्धारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में एलपीजी के दाम से होता है क्योंकि भारत में अधिकांश गैस की सप्लाई आयात पर निर्भर है. भारत में आईपीपी का बेंचमार्क सऊदी अरामको की एलपीजी प्राइस होती है. यानी दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनी सऊदी अरामको की एलपीजी कीमत के आधार पर घरेलू बाजार के दर निर्धारित होते हैं. इसके अलावा एफओबी (फ्री ऑन बोर्ड), समुद्र के रास्ते ढुलाई, इंश्योरेंस, कस्टम ड्यूटी, पोर्ट ड्यूज आदि भी कीमतें तय करते हैं. ये सभी कीमतें डॉलर में कोट होती हैं, फिर उस डॉलर को रुपये में कनवर्ट किया जाता है. अभी चूंकि डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर चल रहा है, इसलिए एलपीजी की कीमतें पहले की तुलना में अधिक हैं. इन सभी फैक्टर के अलावा देश के अंदर गैस सिलेंडर की ढुलाई, मार्केटिंग कॉस्ट, ऑयल कंपनियों का मार्जिन चार्ज, बॉटलिंग चार्ज, डीलर कमीशन और जीएसटी सिलेंडर के दाम तय करते हैं.

क्यों महंगी हो रही गैस

एलपीजी की कीमत कच्चे तेल पर आधारित है और अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्रेंट 110 डॉलर पर पहुंच गया है. यूक्रेन युद्ध के चलते कच्चे तेल के दाम बढ़े हैं. लिहाजा गैस के दाम भी लगातार ऊपर भाग रहे स्टॉक की कीमतों में क्या वृद्धि होती है हैं. एलपीजी के दाम में नवंबर 2022 से बढ़ोतरी देखी जा रही है. यह वही दौर था जब दुनिया कोरोना के असर से बाहर निकल रही थी. उसके बाद तेल और गैसों के मांग में भारी वृद्धि देखी गई, लेकिन कंपनियों ने मांग के अनुरूप सप्लाई को बहाल नहीं किया. इससे पूरी दुनिया में एक कृत्रिम कमी पैदा की गई. ये सब चल ही रहा था कि इस साल फरवरी में रूस युद्ध शुरू हो गया. इससे रूस से दुनिया में सप्लाई होने वाली गैस और तेल के खेप पर भारी असर पड़ा.

Bonus Issue VS Stock Split: स्टॉक स्प्लिट और बोनस शेयर क्या है? कंपनियां क्यों करती हैं ऐसा? आम निवेशकों पर क्या होता है इसका असर

Bonus Issue VS Stock Split: स्टॉक स्प्लिट का मतलब होता है- शेयरों का विभाजन. आसान शब्दों में इसका मतलब है किसी भी शेयर को दो या दो से ज्यादा हिस्सों में तोड़ देना.

Bonus Issue VS Stock Split: स्टॉक स्प्लिट और बोनस शेयर क्या है? कंपनियां क्यों करती हैं ऐसा? आम निवेशकों पर क्या होता है इसका असर

कंपनियां कई बार अपने शेयरधारकों को डिविडेंड देती है. वहीं, कई बार उन्हें एक्स्ट्रा शेयर भी दिया जाता है.

Bonus Issue VS Stock Split: कंपनियां अपने शेयरधारकों को खुश करने के लिए कई अलग-अलग तरीके अपनाती है. इसके तहत, कंपनियां कई बार अपने शेयरधारकों को डिविडेंड देती है. वहीं, कई बार उन्हें एक्स्ट्रा शेयर भी दिया जाता है. स्टॉक मार्केट में पैसे लगाने वाले निवेशक अक्सर स्टॉक स्प्लिट (Stock Split) और बोनस शेयर (Bonus Share) के बारे में सुनते स्टॉक की कीमतों में क्या वृद्धि होती है होंगे, लेकिन कई लोगों को इसका मतलब नहीं पता होता है. क्या है इनका मतलब और कंपनियां क्यों करती हैं इन शब्दों का इस्तेमाल. आइए समझते हैं.

क्या है स्टॉक स्प्लिट

स्टॉक स्प्लिट का मतलब होता है- शेयरों का विभाजन. आसान शब्दों में इसका मतलब है किसी भी शेयर को दो या दो से ज्यादा हिस्सों में तोड़ देना. कंपनी इसमें नया शेयर जारी नहीं करती है बल्कि इसमें मौजूदा शेयरों को ही डिवाइड या स्प्लिट कर दिया जाता है. मान लीजिए, कोई कंपनी 1:2 रेश्यो में स्टॉक स्प्लिट का एलान करती है. इसका मतलब है कि अगर आपके पास उस कंपनी का एक शेयर है तो यह दो शेयर बन जाएगा. वहीं, 100 शेयरों की संख्या स्प्लिट के बाद 200 हो जाएगी.

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कंपनियां क्यों करती हैं स्टॉक स्प्लिट

अब सवाल यह है कि कंपनी ऐसा क्यों करती है? जानकारों की मानें तो जब किसी कंपनी का शेयर काफी ज्यादा हो जाता है तो छोटे निवेशक इसमें पैसा लगाने से कतराते हैं. छोटे निवेशकों के लिए इसमें निवेश को आसान बनाने के लिए ही कंपनी स्टॉक स्प्लिट स्टॉक की कीमतों में क्या वृद्धि होती है करती है. इसके अलावा, कई बार मार्केट में डिमांड बढ़ाने के लिए भी स्टॉक स्प्लिट किया जाता है.

क्या है बोनस शेयर

बोनस इश्यू तब होता है जब मौजूदा शेयरधारकों को निश्चित अनुपात में अतिरिक्त शेयर दिए जाते हैं. मान लीजिए कि कोई कंपनी 4:1 के रेश्यो में बोनस इश्यू का एलान करती है तो इसका मतलब है कि अगर किसी शेयरहोल्डर के पास 1 शेयर हो तो उसे इसके बदले 4 शेयर मिलेंगे. इसका मतलब है कि अगर किसी निवेशक के पास 10 शेयर हैं तो उसे बोनस शेयर के रूप में कुल 40 शेयर मिल जाएंगे.

बोनस इश्यू VS स्टॉक स्प्लिट: शेयर की कीमत

बोनस इश्यू- बोनस इश्यू में शेयर की कीमत जारी किए गए शेयरों की संख्या के अनुसार एडजस्ट हो जाती है. मान लीजिए किसी कंपनी ने 4:1 रेश्यो में बोनस इश्यू का एलान किया है. अब इसे उदाहरण के समझते हैं.

  • बोनस इश्यू से पहले स्टॉक की कीमत- 100 रुपये
  • बोनस इश्यू से पहले कुल शेयर संख्या- 100 शेयर
  • बोनस जारी होने के बाद शेयरों की संख्या हो जाएगी- 400 शेयर
  • वहीं, बोनस इश्यू के बाद स्टॉक की कीमत हो जाएगी- 25 रुपये

स्टॉक स्प्लिट- स्टॉक स्प्लिट में शेयर की कीमत अनुपात में आधी हो जाती है.

  • मान लीजिए, स्टॉक स्प्लिट रेश्यो- 1:2
  • स्टॉक स्प्लिट से पहले स्टॉक की कीमत- 100 रुपये
  • स्टॉक स्प्लिट से पहले कुल शेयर संख्या- 100 शेयर
  • स्टॉक स्प्लिट के बाद शेयर संख्या- 200 शेयर
  • स्टॉक स्प्लिट के बाद शेयर की कीमत- 50 रुपये

बोनस इश्यू VS स्टॉक स्प्लिट: क्या है अंतर और निवेशकों के लिए क्या है इसके मायने

स्टॉक स्प्लिट और बोनस शेयर दोनों में ही शेयरों की संख्या बढ़ जाती है और मार्केट वैल्यू कम हो जाती है. हालांकि, केवल स्टॉक स्प्लिट में ही फेस वैल्यू कम हो जाती है, जबकि बोनस इश्यू में यह नहीं होता. स्टॉक स्प्लिट और बोनस इश्यू में यही मुख्य अंतर है. कंपनियां इन दोनों तरीकों से अपने शेयरहोल्डर्स को इनाम देती है. बोनस इश्यू और स्टॉक स्प्लिट दोनों में ही शेयरहोल्डर्स को अतिरिक्त राशि देने की जरूरत नहीं होती. स्टॉक स्प्लिट में पहले से उपलब्ध शेयर स्प्लिट हो जाती है. इसका मतलब है कि आपके पास उपलब्ध शेयरों की संख्या बढ़ जाती है. वहीं, शेयरों की कीमत कम हो जाती है. हालांकि, आपके द्वारा निवेश किए गए पैसे पर स्टॉक स्प्लिट के चलते कोई प्रभाव नहीं पड़ता है.

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